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लेखनी कहानी -08-Dec-2022 ख़ामोशी में भी एक शोर है



शीर्षक = ख़ामोशी में भी एक शोर है



शाम के पांच बज रहे थे , अवस्थी भवन के दरवाज़े पर किसी की दस्तक  होती है, घर के अंदर माथे पर चिंता की लकीरें ऊकेरे हुए , इधर से उधर टहल रही रमा अवस्थी जी, दरवाज़े पर हुयी दस्तक को सुन , दरवाज़े की तरफ दौड़ी बिना पूछे शायद वो जानती थी  कि दरवाज़े पर कौन आया है, और शायद कि वो उसी शख्स का इंतज़ार कर रही थी और इधर से उधर टहल रही थी


दरवाज़ा खोलते ही, रमा जी ने सामने खड़े अपने पति  विनोद अवस्थी  जी से घबराते हुए कहा " अच्छा हुआ! जो आप आ गए  मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था  कि क्या करू और क्या नहीं करू , किसका साथ दू और किसका नही बहु अलग अपना समान बांध कर घर से चली गयी और उधर हमारा  गुस्सैल बेटा भी लड़ झगड़ कर घर से बाहर चला गया 


आखिर कब तक बहु उसके इस तरह के गुस्सैल बर्ताव को बर्दाश्त करती, जिस तरह वो दफ्तर में अपने मुलाजिमो पर हुकुम चलाता है  ऐसा ही वो बहु के साथ भी करता था, वो भी इंसान है  कब तक बर्दाश्त करती और मट्टी कि मूरत कि तरह खुद को मोन रखती  आज उसके सब्र का पैमाना लबरेज ( पूरा ) हो गया  और उसने अपनी ख़ामोशी तोड़ कर उसके अपने साथ किये गए बर्ताव से तंग आकर उसे कुछ जवाब दे दिए  उसकी अब तक कि ख़ामोशी अंदर एक तूफान लिए बैठी थी  जिसने आज हमारे बेटे के समक्ष ला खड़ा किया जिसके बाद हमारे बेटे ने अपना आपा खो दिया और फिर ना जाने कब बात हाथ से निकल गयी और बहु अपना समान लेकर घर से चली गयी वही हमारा बेटा विक्रांत भी कही चला गया "


अपनी पत्नि द्वारा एक ही सास में बताई गयी घर कि व्यथा को जान कर, विनोद जी ने हाफ रही अपनी पत्नि के कांधो पर हाथ रखा और उन्हे नजदीक रखी कुर्सी पर बैठा कर घर में काम कर रही नौकरानी से पानी लाने को कहा


तब ही रमा जी ने बताया कि मीना घर पर नही है , उसे मैंने उस समय ही भेज दिया था  जब मुझे लगने लगा था, की घर का माहौल अब ख़राब होने को है , आप तो जानते ही है  इन काम वाली औरतों को, इस घर की बात उस घर पहुंचाने में इन्हे जरा भी समय नही लगता, इसलिए मैंने मीना की छुट्टी कर दी और कल आने का कह दिया था 


"चलिए कोई बात नही, मैं पानी लेकर आता हूँ " विनोद जी ने कहा और रसोई की तरफ पानी लेने चले गए 


थोड़ी देर बाद, रमा जी ने पानी पिया और बोली " मुझे दोनों की बहुत चिंता हो रही है, ना जाने ये हमारा विक्रांत किस पर चला गया, इतना गुस्सैल तो कोई भी नही है हमारे खानदान में, ना ही आपकी तरफ और न ही मेरी तरफ,

ना जाने अब क्या होगा? बहु के मायके वाले उसे समझा बुझा कर भेजेंगे की नही, और भेज भी देंगे तब भी क्या बदल जाएगा, हमारा बेटा तो वैसा ही रहेगा जैसा वो है  फिर कुछ ना कुछ हो जाएगा, और फिर बहु अपने मायके चली जाएगी
जब तक वो खामोश थी  तब तक सब सही था , अब तो उसने भी जवाब देना शुरू कर दिए है  और क्यू नही देती, उसके दफ्तर में काम करने वाली कोई मुलाजिम थोड़ी है जो उसकी अच्छी और बुरी बात पर अपना सर हिलाती रहती , अब तो सिर्फ ईश्वर ही कुछ कर सकते है, हमने तो बहुत कोशिश कर ली पर कुछ नही हुआ पीर, फ़कीर , मंदिर दरगाह सब जगह ले गए  अपने बेटे को कि शायद उस पर किसी भूत प्रेत का साया हो, जो इतना गुस्सा करता है  बात बात पर


लेकिन कोई फायदा ना हुआ, शादी करा कर देखली कि शायद औरत का मोह उसके गुस्से को कम कर सके , लेकिन उससे भी कोई फायदा नही हुआ, अब तो सब कुछ राम भरोसे ही है  "


"भाग्यवान! आप चिंता मत कीजिये, मैं जाकर देखता हूँ कि आखिर विक्रांत कहा गया है , जरूर वही अपनी पुरानी जगह समुन्द्र के किनारे बैठा होगा, मैं उससे जाकर बात करता हूँ, देखना  रात होने से पहले वो बहु को घर ले आएगा  "विनोद जी ने कहा

"भगवान करें आप जो कह रहे है , वो सत्य हो " रमा जी ने कहा

उसके बाद विनोद जी अपने बेटे विक्रांत को खोजते खोजते  थोड़ी ही दूरी पर बने बीच पर जा पहुचे, जहाँ शांत समुन्द्र कि लहरें किनारो से टकरा कर आवाज़ कर रही थी, उन सब के बीच विक्रांत एक कुर्सी पर बैठा था  और मन ही मन कुछ कह रहा था 


अचानक अपने सामने अपने पिता को देख विक्रांत चौक गया और खड़ा होते हुए बोला " पापा! आप , आप यहाँ है तो दफ्तर में कौन है, इसका मतलब मम्मी ने आपको सब बता दिया या फिर आपकी लाडली बहु ने आपके कान भर दिए है  मेरे खिलाफ , बहुत ही चलाक लड़की है, अंदर ही अंदर मेरे खिलाफ ना जाने कौन कौन सी साजिशे रचा रही थी और सामने से माटी कि मूरत बनी फिरती थी , शुक्र है कि आज उसकी ख़ामोशी के पीछे छिपा शोर मेरे सामने आ गया , अब तो मैं उसे तलाक देकर ही दम लूँगा, मेरा नाम भी विक्रांत अवस्थी है, उसे रुलाते हुए अपने क़दमों पर नही गिराया तो मेरा नाम भी विक्रांत अवस्थी नही, फिर जब उसके घरवाले और वो माफ़ी कि भीख मांगेंगे तब पता चलेगा कि मैं कौन हूँ, "


अपने बेटे की वाणी से अहंकार की बू आते देख  विनोद जी ने अपने बेटे के कांधे पर हाथ रखा और उसे कुर्सी पर बैठाया और स्वयं भी बैठ गए 


थोड़ी देर के लिए दोनों खामोश हो गए थे , सिवाय समुन्द्र की लेहरो के अलावा वहाँ कोई अन्य आवाज़ नही आ रही थी , तट पर बैठे विक्रांत और विनोद जी के पैरों को लेहरो द्वारा बहाया गया पानी छू रहा था 


काफ़ी देर खामोश रहने पर विक्रांत ने अपने पिता से पूछ ही लिया " क्या हुआ पापा? आप इतने शांत क्यू बैठे है ? चलिए घर चलते है, फिर मैं अपने वकील से बात करता हूँ ताकि इस चैप्टर को जल्दी ही बंद कर दिया जाए "


विनोद जी ने अपने बेटे विक्रांत की तरफ देखा और बोले " बेटा एक बात बताओ  तुम यहाँ, इस तट पर क्यू आते हो? क्यू तुम घंटो घंटो यहाँ बैठ कर वापस घर जाते हो "


"ये केसा सवाल है  पापा, हम सब ही जानते है की समुन्द्र किनारे काफ़ी शांति भरा माहौल होता है, इतना विशालकाय समुन्द्र कितनी शांति के साथ  अपनी उठती लेहरो को समुन्द्र तट तक लाता है  और फिर उन्हे वापस खींच लेता है, इसका ये शांत स्वाभाव ही सबको अपनी और आकर्षित करता है और मुझे भी  " विक्रांत ने कहा


"ठीक कहा बेटा, मुझे यही जवाब की उम्मीद थी  अच्छा बेटा अब ये बताओ  जब ये इतना बड़ा विशालकाय समुन्द्र अपनी इस ख़ामोशी को छोड़ , अपने रोद्र रूप में आता है  तब क्या होता है  " विनोद जी ने पूछा 

"पापा, ये तो सब ही जानते है  की जब ये शांत स्वाभाव रखने वाला समुन्द्र जिसकी ख़ामोशी में एक शोर छिपा होता है  और उसी शोर को ये बाहर निकालता है  तब सुनामी आती है  जिसके बाद सिर्फ और सिर्फ तबाही आती है  " विक्रांत ने कहा


ठीक कहा बेटा, जब समुन्द्र अपनी ख़ामोशी तोड़ता है  तब सुनामी का रूप धारण कर अपने आस पास की सब चीज़ो को तहस नहस कर देता है , जिसके बाद तुम या फिर इसकी ख़ामोशी को पसंद करने वाले इसके नाम से भी दूर  भाग जाते है 

बेटा मेरा तुमसे इस बात को कहने का मतलब सिर्फ इतना ही है  की तुम जितना अपने मिजाज को ठंडा और शांत रखोगे उतना ही लोग तुम्हे पसंद करेंगे  और अगर ऐसे ही तुम सुनामी की तरह लोगो से मिलोगे तो एक दिन तुम अकेले रह जाओगे


बेटा ईश्वर ने सब को जुबान दी है , हाँ कोई जन्मजात गूंगा होता है  तो किसी को उसकी मजबूरी गूंगा रहने पर मजबूर कर देती है , लेकिन इसका मतलब ये हरगिज़ नही की उसके मुँह में आवाज़ नही है , वो ख़ामोशी से आपकी हर गलत सही बात बर्दाश्त कर रहा है  तो इसका मतलब ये नही की उसकी उस ख़ामोशी के पीछे कोई शोर नही है 

हर खामोशी अपने अंदर एक शोर छिपाये बैठी होती है , जो की समय आने पर बाहर निकल ही आता है 


बेटा मैं जानता हूँ तुम अभी जवान हो, तुम्हारा खून अभी बहुत गर्म है , तुम दफ्तर में काम करने वाले लोगो को अपना मुलाजिम समझते हो और उनसे अपनी हर सही गलत बात मनवा लेते हो और वो बेचारे खामोशी के साथ अपनी मजबूरियो के खातिर तुम्हारी हर सही गलत बात क़ुबूल कर लेते है , बेटा ऐसा नही है  की वो खामोश है  तो तुम उन लोगो के साथ जानवरो से सुलूक करोगे , पैसे देते हो तो उन्हे अपना बंधुआ मजदूर समझ लोगे चलो वो लोग तो तुम्हारे मुलाजिम है  पर तुम्हारी पत्नि तो तुम्हारी अर्धांगिनी है , उसे तो तुमने नही खरीदा है उसे तो तुम कोई महाना तनख्वाह नही देते हो, तो फिर उसके साथ इस तरह का मालिक और गुलाम जैसा रवैया क्यू रखते हो

बेटा! अभी तो तुम्हे कुछ एहसास नही होगा, तुम जब चाहो जिसे चाहो पैसे के दम पर लोगो की मजबूरी का फायदा उठा कर, उनकी खामोशी के पीछे के शोर को खरीफ सकते हो


लेकिन बेटा हर दौर एक सा नही रहता है, कल को जब हम लोग मर जाएंगे, तुम्हे बुढ़ापा आना गहरेगा  तब सोचा है कौन तुम्हे एक घूट पानी पिलाने आएगा 


कोई भी नही क्यूंकि तुमने सुनामी बन कर अपने चाहने वालों को खुद से ही दूर कर दिया तो फिर तुम्हारे पास कौन आना चाहेगा 

जिस तरह सुनामी के बाद समुन्द्र की और कोई रुख नही करता उसी तरह तुम्हारी तरफ भी कोई नही आएगा और तुम तन्हा ही, अपने किये गए बर्ताव पर पछतावा करते रहोगे 


तुम्हारे पास अभी भी समय है, अपने गुस्से को अहंकार के भेट मत चढ़ने दो जहाँ तक हो सके अपने स्वाभव को शांत रखने की कोशिश करो ,अपने अंदर के शोर को ख़ामोशी के माध्यम से कम करने की कोशिश करो  ताकि तुम्हे लोग पसंद करने लगे और तुम्हारी इज़्ज़त भी हो, विनोद जी ने अपने बेटे विक्रांत को समझाते हुए कहा


विक्रांत जो अपने पिता की बाते ध्यान पूर्वक सुन और समझ रहा था, शायद अपने पिता की बातों को वो अपनी जिंदगी में लाने की सोच रहा था इसलिए ही तो उसने अपने पिता का धन्यवाद किया उसे समझाने के लिए  और उन्ही के साथ अपनी पत्नि को लेने उसके मायके चला गया 


प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी  




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5 Comments

shweta soni

09-Dec-2022 01:43 PM

बेहतरीन रचना 👌

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Abhilasha deshpande

09-Dec-2022 12:54 AM

Nice

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Parangat Mourya

08-Dec-2022 05:29 PM

Behtreen 🙏🌸

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